रिपोर्टिंग और ट्रॉमा के ख़तरे

पत्रकारों को ऐसी घटनाओं का गवाह बनने के लिए बुलाया जाता है जिनके प्रत्यक्ष अनुभव का अवसर दूसरे लोगों को शायद ही मिलता है. वे श्रोताओं की आँख और कान हैं और वे जो देखते और सुनते हैं वो दहलाने और सदमे में डालने वाला अनुभव हो सकता है.
ये समझना ज़रूरी है कि पत्रकार होने के साथ-साथ आप इंसान भी हैं. दरअसल, इंसान होना पत्रकारिता के केंद्र में है. आप जो घटना कवर कर रहे हैं उससे आप अप्रभावित नहीं रह सकते और इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है.
मार्क ब्रेन ने पत्रकारिता में 30 वर्ष बिताए हैं, इनमें कुछ बतौर बीबीसी के विदेश संवाददाता के रूप में. वे एक रजिस्टर्ड मनोचिकित्सक और यूरोपियन सेंटर फ़ॉर जर्नलिज़्म एंड ट्रॉमा के संस्थापक हैं.
उनकी सलाह हैः
पत्रकार होने का ये मतलब नहीं है कि आपने किसी सुपरमैन की तरह कोई कवच पहना हुआ है कि आप निकले और बिना किसी तरह से प्रभावित हुए रिपोर्ट कवर करने लगें.